जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले ,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितांभुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं ,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।।१ ।।
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके ,
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ।।२ ।।
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर ,
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि ,
क्वचिच्चिदंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।३ ।।
लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा ,
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे ,
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ।।४ ।।
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर ,
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक ,
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ।।५ ।।
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं ,
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ।।६ ।।
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल -
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ।।। ७ ।।
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् -
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः ,
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगदुरंधरः ।।८ ।।
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं ,
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ।।९ ।।
अखर्व सर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी ,
रसप्रवाहमाधुरी विश्रृंभणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं ,
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ।।१० ।।
जयत्वदभविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ,
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ।।११ ।।
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः ,
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ।।१२ ।।
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् ,
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः ,
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३ ।।
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं ,
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गति ,
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ।।१४ ।।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं ,
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां ,
लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ।।१५ ।।
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
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