इंदुकोटितेजकरुणसिंधु भक्तवत्सलं | श्रीगुरुदत्ताष्टक गुरुचरित्र अध्याय ४०

इंदुकोटितेजकरुणसिंधु भक्तवत्सलं । 
नंदनात्रिसूनु दत्तमिदिराक्ष श्रीगुरुम् ॥ 
गंधमाल्यअक्षतादिवृंददेववंदितं । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥१ ॥ 

मायपाशअंधकारछायदूरभास्करं । 
आयताक्ष पाहि श्रियावल्लभेशनायकम् ॥ 
सेव्यभक्तवृंदवरद भूयभूय नमाम्यहम् । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥२ ॥ 

चित्तजादिवर्गषट्क - मत्तवारणांकुशम् । 
तत्त्वसारशोभितात्मदत्त श्रियावल्लभम् ।।
 उत्तमावतार भूत - कर्तृ भक्तवत्सलं । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ।।३ ।। 

व्योमरापवायुतेजभूमिकर्तुमीश्वरम् । 
कामक्रोधमोहरहित सोमसूर्यलोचनम् ॥ 
कामितार्थदातृ भक्तकामधेनु श्रीगुरुम् । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥४ ॥ 

पुंडरीकआयताक्ष कुंडलेंदुतेजसम् । 
चंडदुरितखंडनार्थ दंडधारि श्रीगुरुम् ॥ 
मंडलीकमौलिमार्तडभासिताननं । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥५ ॥ 

वेदशास्त्रस्तुत्यपाद आदिमूर्तिश्रीगुरुम् । 
नादबिंदुकलातीत , कल्पपादसेव्ययम् । 
सेव्यभक्तवृंदवरद भूयभूय नमाम्यहम् । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥६ ॥ 

अष्टयोगतत्त्वनिष्ठ तुष्ट ज्ञानवारिधिम् । 
कृष्णवेणितीरवासपंचनदीसंगमम् ।। 
कष्टदैन्यदूरिभक्ततुष्टकाम्यदायकम् । 
वंदयामि नारसिंहसरस्वतीश पाहि माम् ॥७ ॥ 

नारसिंहसरस्वती नामअष्टमौक्तिकम् । 
हारकृत शारदेन गंगाधर आत्मजं ॥ 
धारणीक देवदीक्षगुरुमूर्तितोषितम् । 
परमात्मानंदश्रियापुत्रपौत्रदायकम् ॥८ ॥ 

नारसिंहसरस्वतीय अष्टंक च यः पठेत् । 
घोरसंसारसिंधुतारणाख्यसाधनम् ।। 
सारज्ञानदीर्घआयुरारोग्यादिसंपदम् । 
चारुवर्गकाम्यलाभ वारंवार य : जपेत्॥९ ॥
थोडे नवीन जरा जुने