जय देवी सप्तशृंगा |
अंबा गौतमी अंगा |
नटली ही बहुरंगा |
ऊटी शेंदुर अंगा ।। १ ।।
जय देवी सप्तशृंगा |
पुर्वे मुख अंबे ध्यान |
जरा वाकडी मान |
मार्कंडेया देई कान |
सप्तशतीचे पान || २ ||
जय देवी सप्तशृंगा |
माय तुझा बहु थाट ।
देई सगुण भेट |
प्रेम पान्हा ऐक घोट ।
भावे भरले गे पोट ।।३ ।।
जय देवी सप्तशृंगा |
महिषी पुत्र महिषासुर |
दृष्ट कामी असुर |
करी ढाल समशेर |
चक्र उडविले शीर || ४ ।।
जय देवी सप्तशृंगा |
निवृत्ती हा राधा सुत |
अंबे आरती गात |
अठराही तुझे हात |
भक्ता अभय देत ।। ५ ।।
जय देवी सप्तशृंगा |