सार्थ श्री पांडुरंगाष्टकम्

महायोगपीठे तटे भीमरथ्यां

वरं पुण्डरीकाय दातुं मुनीन्द्रैः।

समागत्य तिष्ठन्तमानंदकन्दं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् 


महायोग पीठ भीमा नदी के तट पर कई महान ऋषियों के साथ पंढरपुर नामक क्षेत्र में वरदान देने के लिए विराजित, आनंदकंद परमात्मा परब्रह्म भगवान पांडुरंग को मैं नमस्कार करता हूं l

तडिद्वाससं नीलमेघावभासं

रमामन्दिरं सुंदरं चित्प्रकाशम्।

वरं त्विष्टिकायां समन्यस्तपादं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुगम् l


 जिनका शरीर नीले बादल के समान सुंदर है, समीप लक्ष्मी जी का वास हैं, चित्प्रकाशित प्रभू अपने भक्तो के लिये इंट पर खडे हुये ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

प्रमाणं भवाब्धेरिदं मामकानां

नितम्बः कराभ्यां धृतो येन तस्मात्

विधातुर्वसत्यै धृतो नाभिकोषः

परब्रह्म लिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् 


प्रभू भक्तों को दर्शाते हैं कि भव सागर कमर तक ही गहरा है. (इसलिये प्रभू के हाथ कमर पर है) और जो ब्रह्मा जी को नाभी मे धारण करते हैं ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

स्फुरत्कौस्तुभालङ्कृतं कण्ठदेशे

श्रिया जुष्टकेयूरकं श्रीनिवासम्।

शिवं शान्तमीड्यं वरं लोकपालं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरंगम् 


जिनके गले में देदीप्यमान कौस्तुभमणि सुंदर लगते हैं, भुजाएं केयूर से सुशोभित हैं और हृदय में लक्ष्मी का वास है, जो सर्वोच्च हैं और लोगों के पालनकर्ता हैं ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

शरच्चंद्रबिम्बाननं चारुहासं

लसत्कुण्डलक्रान्तगण्डस्थलाङ्गम्।

जपारागबिम्बाधरं कञ्जनेत्रं

परब्रमलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् 


 शरद पौर्णिमा के चंद्रमा समान जिनका चेहरा आकर्षक तथा सदैव हास्य युक्त रहता है, कानों को सुशोभित करने वाले कुंडल, होंठ लाल हैं और जिसकी आंखें कमल के समान हैं ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

किरीटोज्ज्वलत्सर्वदिक् प्रान्तभागं

सुरैरर्चितं दिव्यरत्नैरनर्घ्यैः ।

त्रिभङ्गाकृतिं बर्हमाल्यावतंसं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ।


मुकुट की रोशनी से सभी दिशाओं को प्रकाशित करानेवाले, जिनकी सभी देवताओं द्वारा दिव्य, बहुमूल्य रत्नों के साथ पूजा की जाती है, और जिन्होंने रेंगते हुए बालकृष्ण रूप धारण किया है (त्रिभंगाकृति) l सिर पर मोरपियों का तूरा सुशोभित है ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

विभुं वेणुनादं चरन्तं दुरन्तं

स्वयं लीलया गोपवेषं दधानम्।

गवां वृन्दकानन्दनं चारुहासं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ।


जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, जो दिव्य वेणुनाद (बासरी) करते है, जो गोपवेश धारण करते है, जो गैया के प्रिय हैं, जो बहुत मधुर स्मितहास्य युक्त आहे। ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

अजं रुक्मिणीप्राणसञ्जीवनं तं

परं धाम कैवल्यमेकं तुरीयम्।

प्रसन्नं प्रपन्नार्तिहं देवदेवं

परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ।


जो माता रुक्मिणी के प्राणधार हैं, भक्तों के परम विश्राम हैं, जो शुद्ध कैवल्य हैं, साथ ही चेतना की अवस्थाओं से परे हैं, जो हैं सदा प्रसन्न रहने वाले, शरणागत के कष्टों का नाश करने वाले तथा देवों के भी देव हैं ऐसे परब्रम्ह भगवान पांडुरंग को मैं प्रणाम करता हु l

स्तवं पांडुरंगस्य वै पुण्यदं ये

पठंत्येकचित्तेन भक्त्या च नित्यम् ।

भवांभोनिधिं तेऽपि तीर्त्वांतकाले

हरेरालयं शाश्वतं प्राप्नुवंति


जो व्यक्ती इस पांडुरंगाष्टक स्तोत्र का नित्य एवं एकचित्त से पठण करता हैं वह अपने अंतकाल के पश्चात शाश्वत हरी के परमधाम को निश्चित प्राप्त कर लेता हैं

इति श्रीमत् शंकराचार्य विरचितं पांडुरंगाष्टकम् संपूर्णम्



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